बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 59

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

10. कूबरी, तुझे धिक्कार है

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व्यर्थ पड़े रहने से क्या लाभ?
चलूँ, बाहर निकलूँ;
सम्भव है, कुछ शान्ति मिले।
किंतु अभी तो रात बहुत शेष है;
रहे न,
अपने लिये दिन कब होता है?
जब सदा रात ही है तो उससे डरना क्या?
दिन तो तभी होगा,
जब प्यारे नटवर सामने खड़े होकर मुस्करायेंगे।
सास जान ले तब?
उसकी कोई चिन्ता नहीं।
सास का बिना जताये चुपके से चली जाना
हम लोगों का पूरा अभ्यास है।
सबेरे आकर कह दूँगी कि अभी तो गयी थी।
तो धीरे से उठकर चल देना चाहिये।
नींद-वींद नहीं आयेंगी।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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