वहाँ चलती हूँ,
यदि मेरे मधुकर मिल गये तो तू पेट भर के गूँज लेना।
किंतु तू क्यों मानने लगा!
आखिर काला-कुटिल भौंरा ही ठहरा!
तू निर्दयता का साक्षात् रूप है।
दिनभर में न जाने कितनी भोली कलियों के ऊपर
गुनगुन करके अपना झूठा प्रेम दर्शाता है।
वे तुझे समझ नहीं पातीं।
तेरे झूठे प्रेम के बहकावे में आ जाती हैं,
अपना सब कुछ तुझे अर्पण कर देती हैं।
और तू क्या करता है?
रस पिया और भागा।
बेचारी कलियाँ अपना सब कुछ गँवाकर
हाथ मलती रह जाती हैं।
जो दिन भर यही करता हो,
उसके हृदय में दया कहाँ।