बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 40

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

7. रे भौंरे, मत गूँज

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यदि ऐसी दशा में मार पड़ी तो
तुम्हारे प्रिय रूप का अपमान हो जायगा।
इसलिये शीघ्र ही खिसक लेना चाहिये।
असी सास जी कंडे पाथ रहीं हैं।
यह क्या बात है?
लोग मेरी ओर ध्यान से क्यों देख रहे हैं?
मैंने कोई नयी बात की है क्या?
कुछ दिन पहले तो नित्य ही ऐसा श्रृंगार करती थी।
फिर आज क्या बात हो गयी
जो लोग आश्चर्यपूर्वक देख रहे हैं?
उँह, देखने दो।
मुझे जल्दी से पैर बढ़ाकर निकल चलना चाहिये।
दुष्ट भौरे!
तू क्यों पीछे लग गया?
लोगों की आँखों से पिंड छूटा तो तू आ गया।
तेरे हाथ जोड़ती हूँ,
थोड़ी देर के लिये मान जा।

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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