गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 501

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 18

तात्पर्य कि जिस परमतत्त्व का प्राकट्य अन्यत्र कठिन प्रयास-सिद्ध है, वह तीर्थ-धामों में सहज-सुलभ है। जैसे सूर्यनारायण की किरणें सभी स्थानों पर प्रकीर्ण होती हैं, फिर भी स्फटिक-मणि, काँच आदि पर विशिष्ट रूप से प्रकट होती हैं, वैसे ही, सर्व-व्याप्त परात्पर प्रभु भी सूर्यकान्त-मणि-रूप विशिष्ट तीर्थ-स्थानों में अग्निरूपवत् स्पष्टतः भासित हो जाते हैं। गोपांगनाएँ कह रही हैं, “हे श्यामसुन्दर! मदन-मोहन! श्रीकृष्ण-स्वरूप में आपकी जो यह अभिव्यक्ति है, प्राकट्य है, परम पवित्र दिव्य अवतार है, ‘वृजिनहन्न्यलं’ अलं अत्यर्थम् अतिशयेन वृजिनहन्त्री वृजिनस्य पापस्य हन्त्री। वह सम्पूर्ण दोष, सम्पूर्ण पापों का हनन करने वाला है। हे प्रिय! आपकी यह अभिव्यक्ति ‘व्रजवनौकसां व्यक्तिरंग ते’ व्रज के खदिर, बकुल, कदम्ब एवं काम-वन आदिक विविन्न वनों के सम्पूर्ण तरु, लता एवं गुल्म तथा पशु-पक्षी आदि प्राणीमात्र के ही सर्वप्रकार के दुःख-दारिद्रय के वेदन का विधूनन करने वाली है।

हे प्रिय! हम तो आपकी अत्यन्त प्रिय, परमांतरंगा सखीजन है। आप हमारे प्रेमास्पद, प्रेयान् हैं, हम आपकी प्रिय प्रेयसीजन हैं। हे प्रभो! दीपक तले ही अँधेरा है; आपका यह प्राकट्य ही सर्वजन–शोक–विशोषक है। अन्तर्धान होकर आप हमारे असह्य संताप का कारण बन रहे हैं, क्या यह आपके योग्य है?” ‘व्रजन्तीति व्रजाः व्रजेषु वने च ओकांसि गृहणि येषांते व्रजवनौकसः तेषां व्रजवनौकसां’ व्रज में स्थिर होकर रहने वाले स्थावर वृक्षादि तथा विश्वभर के स्थावर ‘व्रजन्ति इति व्रजाः, जंगमाः’ जंगम सम्पूर्ण जड़-चेतन मात्र के ‘वृजिन’ दुःख-दारिद्र्य का आपके प्राकट्य से ही विधूनन हो जाता है। श्रीमद्भागवत में कथा है- आनन्दकन्द भगवान् श्री कृष्णचन्द्र के वैकुण्ठधाम पुनःपधार जाने पर धर्मराज युधिष्ठिर एवं भगवान् के प्रिय सखा अर्जुन ने जगत् का जो रूप देखा वह सर्वथा भिन्न था; भगवान् श्रीकृष्ण के सन्निधान में जगत् का जो मंगलमय स्वरूप था, वह उनके विप्रयोग में सर्वथा विपरीत हो गया; जब तक भगवान् श्रीकृष्ण के चरणारविन्द पृथ्वीतल पर विराजमान थे तब तक कलि का राज्य-काल आ जाने पर भी वह पृथ्वीतल का स्पर्श नहीं कर सका।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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