गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 457

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 17

स्वयं आप्तकाम, पूर्ण आत्माराम होते हुए भी भगवान् श्रीकृष्ण गोपांगनाओं की अविचल अनन्य निष्ठा से प्रेरित हो उनके अनन्त सौन्दर्य-माधुर्ययुक्त श्री अंग-संस्पर्श की कामना करते हैं। जैसे, भगवान् करमा बाई की खिचड़ी के लिये भूखे होकर उनसे मचलने लगते हैं, वैसे ही श्री गोपांगनाओं के सम्मिलन हेतु उनसे प्रार्थना करते हैं। ऐसी प्रार्थना से एक प्रकार का हृदय उदित होता है; सम्मिलन को उत्कट इच्छा का विकार अंग–अंग पर एवं मुखमण्डल पर स्पष्टतः प्रतिभासित हो जाता है। जैसे लोक में, कामुक में कामोदय, उत्कट उत्कण्ठा का अभ्युदय होता है, वैसे ही भगवान् के मुखमण्डल पर भी गोपांगनाओं के अंग-सगेच्छा की स्पष्ट रेखा का, हृच्छयोदय का उदय हुआ।

रस में रस का उदय हो, वीरता में भी वीर रस का उद्रेक हो, कारुण्य में करुणा का उद्रेक हो, ऐसे ही निखिल रसामृत मूर्ति, निखिल श्रृंगार रस मूर्ति भगवान् में भी रस का उद्रेक हुआ। श्रृंगार रस ही संपूर्ण रसों का अंगी रस है; भगवान् श्रृंगार-रस-मूर्ति हैं, सम्प्रयोगात्मक-विप्रयोगात्मक-उभयविध एककाला-वच्छेदेन उद्बुद्ध श्रृंगार-रस-निधिस्वरूप है। इस श्रृंगार-रस-निधिस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण में भी जब रसोद्रेक हुआ, ज्वार आया हो तो वह स्वभावतः अपूर्व चमत्कार उपस्थि करता है। वे कह रही हैं कि हे प्रिय! आपका यह जो अनोखा ‘हृच्छयोदय’ है यही दूसरा मोहन-मंत्र है, यही हमारे अन्तःकरण में आपके प्रति प्रगाढ़ मोह को उत्पन्न करने वाला है।

हे मदन मोहन! आपके ‘प्रहसिताननं’ प्रकृष्ट हासयुक्त मनोरस मुखचन्द्र के दर्शन से ही हमारा हृदय मोहित हो जाता है; आपके श्री अंग के सौन्दर्य पर हमारा हृदय न्योछावर हो जाता है और हम अपका सम्मिलन प्राप्त करने के लिए अत्यन्त आतुर हो जाती है; हमारी यह उत्कट उत्कंठा उत्तरोत्तर अभि-वृद्धिंगत होती रहती है। वस्तुतः रस का चर्वण ही रस की अभिवृद्धि का हेतु है। जितना ही अधिक रसास्वादन किया जाय उतनी ही स्पष्ट उसकी अभि-व्यंजना होती है। यहाँ अनन्यपतिव्रता वृन्दा को कथा विचारणीय है। योगीन्द्र मुनीन्द्र परमहंस तथा देवाधिदेव ब्रह्मा-रुद्रादि भी जिसके मंगलमय कृपा-कटाक्ष के लिए तरसते रह जाते हैं, वे भगवान् विष्णु स्वयं ही वृन्दा की चिता-भस्म में लोट–पोट कर ‘हा वृन्दे! हा वृन्दे!’ विलाप कर रहे हैं।

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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