गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 11शास्त्रों में अन्यत्र भी ऐसे वर्णन मिलते हैं। तुलसीदासकृत ‘राम-चरित-मानस’ में पुष्पक-विमान का वणर्न है। अयोध्या-पुनरागमन हेतु भगवान् राघवेन्द्र रामभद्र पुष्पकयान पर आसीन हुएः उनके राज्याभिषेक का दर्शन पाने को आतुर, वानर, भालू, राक्षस एवं राक्षसी आदिकों ने भी भगवान् श्रीराम से प्रार्थना की कि वे उनको साथ ले चलें। उस सम्पूर्ण समुदाय की प्रार्थना स्वीकार कर भगवान् श्रीराम ने उन सब को भी अपने ही पुष्पक-यान पर बैठा लिया। ऐसा सम्भव ही इसीलिए हुआ कि पुष्पक-यान मनोमय था। पुष्पक-यान का निर्माण ब्रह्मा के मन से हुआ। उनसे कुबेर को, कुबेर को जीतने से रावण को, उस विजय प्राप्त करने से श्रीराम को प्राप्त हुआ। अस्तु मनोमय यान का मनोनीत विस्तार किंवा संकोच स्वाभाविक ही है। इसी तरह, वृन्दावन-धाम भी दिव्य है; गोलोकधाम का स्वरूप ही वृन्दावन धाम में सन्निविष्ट है। ऐसे सम्पूर्ण प्रसंगों का मूल ‘महा नारायणोपनिषद्’ एवं ‘महानारायण त्रिपाद-विभूति उपनिषद्’ में प्राप्त हो जाता है। जैसे, मुक्तामाल में अध्यस्त सर्प को लीन कर दिया जाता है, वैसे ही, भगवत्-चिन्तन हेतु तत्त्वज्ञान द्वारा भव-समुद्र को अचिन्त्य अनन्त परमानन्द सुधा-समुद्र में अन्तर्लीन कर दिया जाता है। इस अचिन्त्य, अनन्त, परमानन्द-सुधा-सिन्धु में तेजोमय, प्रकाशमय, चिन्मग्न मणिद्वीप की कल्पना की जाती है। चित् बोध ही प्रकाश है। इस चिन्मय मणिद्वीप में चित्-सार-चिन्तामणिमय मन्दिर है। ऐसे प्रत्येक मन्दिर एक-एक योजन पर्यन्त विस्तृत है। इन मन्दिरों के प्रत्येक पाषाण का प्रकाश कोटि-कोटि सूर्यनारायण सम्मिलित प्रकाश पुंज तुल्य प्रखर, साथ ही, कोटि-कोटि चन्द्रमा के प्रकाश तुल्य सुशीतल है। इस चित्-सार, चिन्तामणिमय प्रत्येक मन्दिर के भीतर अनेक प्रकार के पुष्पों से विनिर्मित अनेक मन्दिर हैं जो सहस्रकोटि योजन पर्यन्त विस्तृत हैं। इन मन्दिरों के भीतर बड़े-बड़े दिव्य सिंहासन हैं। भक्त-हृदय में उपर्युक्त मणिद्वीप एवं मन्दिरादिकों का अनुभव होता है। तात्पर्य यह कि उपास्य सम्बन्धित धाम का भी उपास्यानुरूप उदात्त भावना से ही अनुसन्धान करना चाहिए। अस्तु, दिव्य वृन्दावन-धाम असंख्यात गाय-बछड़ों का समावेश कदापि अमान्य नहीं हो सकता। |