गोपी गीत -करपात्री महाराजगोपी गीत 10हे सखी! यदि विधाता मनोवांछित फल प्रदान करें तो यही माँगा जाय कि उस स्वरूप को आँखों में ही बसा लूँ।’ तथापि ‘इदानां तदेव क्षोभक जायते’ इस समय तो आपका यह मनोहर स्वरूप ही हमारे क्षोभ का कारण बन रहा है। क्षण-मात्र के लिए भी जिसका वियोग असह्य है वह मधुर, मनोहर, मंगलमय स्वरूप ही इस समय, ‘तिरोधाय’ तिरोहित होकर हमारे क्षोभ का कारण बना रहा है। सर्वज्ञ सर्वेश्वर सर्व शक्तिमान् भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही अपने मुखचन्द्र के प्रतिबिम्ब पर मुग्ध हो जाते हैं। आनन्दोद्रेक से ही प्राणी स्वभावतः नाच उठता है। ‘रत्नस्थले जानुचरः कुमारः, संक्रान्तमात्मीयमुखारविन्दम्। मणिमय प्रांगण में घुटनों के बल चलते हुए शिशु कृष्ण उन मणियों में अपने अद्भुत प्रतिबिम्ब को देखकर मुग्ध हो उसको प्राप्त करने की इच्छा से खेद करते हुए माँ के मुख की ओर निहारते हुए रोने लगे।’ जो जितना ही प्रिय होता है उसमें सान्निध्य की भावना भी उतनी ही अधिक होती है। ‘यन्मर्त्यलीलौपयिकं स्वयोगमायाबलं दर्शयता गृहीतम्। आपके मंगलमय मुखचन्द्र के लोकोत्तर सौरस्य युक्त माधुर्यमय प्रतिबिम्ब स्वरूप को देखकर स्वयं आपको ही विस्मय हो गया अतः आपके मुखचन्द्र की क्षोभकता स्वतः सिद्ध है। |