गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 280

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 8

‘एतेभ्योभूतेभ्योः समुत्या तान्येवानु विनश्यति। न प्रेत्यसंज्ञास्ति’[1] देहेन्द्रियादि रूप में परिणत भूतों से व्युत्थित होकर उसके विनाश के साथ विनष्ट हो जाता है। जैसे, समुद्र में डाले गये सैन्धव-खिल्य की उपाधिनाश के साथ ही साथ उसके पृथक अस्तित्व का भी विनाश हो जाता है वैसे ही तत्त्व-साक्षात्कार से काल्पनिक जीव-भाव भी विनष्ट हो जाता है। जिसके देहेन्द्रियादि रुपेण परिणत भूतों से तादात्म्याभिमान् का अन्त हो गया, जिसके काल्पनिक जीव-भाव का विनाश हो गया वही ‘विधूतद्वन्द्वधर्मा विनष्टाः’ विरक्त होकर विनष्ट हो जाता है और ‘सपदिगृहकुटुम्बं दीनमुत्सृज्य दीनाः, मातापितरौ रुदन्तौ संतौ परिहाय स्वयमपि दीनाः बहवइव विहंगा भिक्षुचर्याम् चरन्ति’ वह विनष्ट पुत्र रोते हुए माता-पिता को छोड़ कर स्वयं भी दीन होकर जीवन-यापन के लिये भिक्षु वृत्ति को स्वीकार कर विहंग की भाँति इतस्ततः भटकता रहता है। ‘विहंगा-हंसा’ हंसवत् नीर-क्षीर का विवेचक; आत्मा-अनात्मा, हेय-उपादेय का विश्लेषण करने वाले योगीन्द्र, मुनीन्द्र भगवत् कथामृत-पान से उन्मत्त भगवत्-भक्त विरक्त होकर भिक्षुचर्योपलक्षित आश्रम को धारण कर लेते हैं। यह चमत्कार भगवान की ‘मधुरया गिरा वल्गु वाक्यया’ का ही है।

गोपांगनाएँ कह रही हैं, हे सखे! आपकी इस वाणी के प्रभाव से देह-गेह अनुसंधान-शून्य होकर निरन्तर आपकी ही आराधना में संलग्न भगवत्-भक्त भी ‘मुह्यन्ति’ मोह को प्राप्त हो जाते हैं। आपके जलरूहानन पुष्करेक्षण एवं अधर सीधु ही उनके आकर्षण का केन्द्र है। ‘अधर्तुम् हर्तुम् अशक्यं यत् सीधु तत् अधरसीधु’ श्यामसुन्दर मदन मोहन के अधरों का सीधु, अमृत जो धर्तुम अशक्य है, निवारण के लिए अनिवार्य है, स्वयं ही अभिव्यक्त हो हमारा आप्यायन करें। हे सखे! ‘स्वागतंवो महाभागाः’ जैसी छल-छद्म युक्त प्रतारणा पूर्ण वाणी, मनोहरा वाणी से मुग्ध होकर देह-गेह से विरक्त होकर हम यहाँ चली आई हैं। ‘मधुरया गिरा वल्गु वाक्यया न तु वज्रवत् कठोरया प्रतियात ततो गृहान्।[2] पतिः स्त्रीभिर्नहातव्यो लोकेप्सुभिरपातकी।[3] इत्यादिरूपया अर्थात्, लोकेप्सु नारी को अपने पति का अतिलंघन नहीं करना चाहिए अतः तुम अपने-अपने घरों को लौट जाओ ऐसी कठोर वाणी न कहकर अपनी मधुर वाणी से हमें आश्वासन दें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बृ. उ., 4/5/13
  2. श्री0 भा0 10/29/27
  3. श्री0 भा0 10/29/25

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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