गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 226

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 6

श्रीकृष्ण-प्रेम में बावरी ये गोपालियाँ अपने जीवनधन, प्राणों के प्राण, श्यामसुन्दर के प्रति अनुरागरसपरिप्लुत, अनुरागाधिक्यजन्य प्रणय-कोप-रस-परिप्लुत वाणी का प्रयोग कर उनके कृपा-प्रसाद की ही आकांक्षा करती हैं। भगवान् श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण प्राणों के प्राण हैं; देह, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, अहंकार का धारक प्राण ही सर्वाधिक प्रिय है। जो प्राणों का धारक, प्राणों का प्राण हो वही स्वभावतः ही प्रियतम है। ‘लोके न हि स विद्येत यो न राम-मनुव्रतः।’[1] संसार में ऐसा कोई पदार्थ नहीं जो राम का अनुव्रत नहीं है परन्तु कोई अभिज्ञ है, कोई अनभिज्ञ है।

‘प्रान प्रान के जीव के जिव सुख के सुख राम।
तुम्ह तजि तात सोहात गृह, जिन्हहिं तिन्हहिं विधि वाम।।’[2]

योगवशिष्ठ में महर्षि वशिष्ठ काकभुशुण्डिजी के प्रति प्राणोपासना का उपदेश करते हैं। तदनुसार जैसे तरंग महासमुद्र से उत्थित होकर पुनः उसी में विलीन हो जाती है वैसे ही, प्राण एवं अपानरूप तरंग भी अचिन्त्य, अत्यन्ताबाध्य, अखंडमान, निर्विकार, स्वप्रकाश, बोधस्वरूप अनन्त महासमुद्र से उत्थित होकर पुनः उसी में समाविष्ट हो प्रशान्त हो जाती है। प्राणरूप तरंग के विलयन एवं अपानरूप तरंग की उत्पत्ति तथा अपानरूप तरंग के विलयन एवं प्राणरूप तरंग की उत्पत्ति के मध्यकाल, संधिकाल में प्राण के प्रशान्त हो जाने से मन भी प्रशान्त हो जाता है। प्राण के चांचल्य से ही मन चंचल होता है।
प्राण के शान्त हो जाने पर मन भी शान्त हो जाता है। यह स्थिति निद्रा-भिन्न है। निद्रा-काल में सत्य-तत्त्व स्वप्रकाश अखण्डबोध, आत्मतत्त्व आकूत हो जाता है; प्राणपानरूप तरंग के क्रमशः उत्थान एवं विलयन के पूर्व संधिकाल में प्राण के प्रशान्त हो जाने से मन भी प्रशान्त हो जाता है। मन के प्रशान्त हो जाने पर संकल्प-विकल्प का अन्त हो जाता है। मन ही उपहित जीव है। ‘प्राणाःबन्धनं आश्रयः यस्य तत् प्राणबन्धनम्। प्राणबन्धं सोम्य मनः’[3] प्राणोपहित सत्पदवाच्य परमेश्वर ही मन उपहित जीव का आश्रय है। ‘अस्मिन् इति बन्धनं बन्धनाधिकरण, प्राणाः बन्धनं अधिकरणं आधारः यस्य’ प्राण एवं अपानरूप पालने में मन उपहित जीवरूप शिशु झूलता रहता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. वाल्मीकि रामायण 2। 37। 32
  2. मानस, अयोध्या का. 290
  3. छा. उप. 6। 8। 2

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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