गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 227

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 6

प्राणापान के सन्धिकाल में अखण्ड भाव, ब्रह्म की अनुभूति होती है। अन्तर्मुख होकर, अंतरंग होकर प्राणापान गत्यागति के मध्यकाल में अखण्ड-मान परब्रह्म का साक्षात्कार करना ही प्राणोपासना है।

‘न प्राणेन नापानेन, मर्त्यो जीवति कश्चन।
इतरेण तु जीवन्ति, यस्मिन्नेतावुपाश्रितौ।।’[1]

अर्थात, केवल प्राण अथवा केवल अपान से प्राणी का जीवन नहीं रहता; किन्तु प्राणी उसके आधार पर जीवित रहता है तो प्राणापान दोनों का धारक है। घटाकाशस्थानीय जीव का जीवन किवा आधार महाकाश ही है, यदि जीव को प्रतिबिंबस्थानीय मान लिया जाय तो बिंब ही जीवन किवा आधार है। इसी तरह यदि जीव को चिदाभाव-स्वरूप मान लिया जाय तो भी उसका आधार, अधिष्ठान परब्रह्म ही है एतावता एकमात्र भगवान् ही प्राण के प्राण, जीव के जीवन एवं सुख के सुख है। अनन्तकोटि ब्रह्माण्डान्तर्गत ब्रह्मादि देवशिरोमणियों का सुख भी अचिन्त्य, अनन्त, आनन्द-सिन्धु का बिन्दु है। प्राणिमात्र ही सुख की आकांक्षा करता है। एतावता प्राणिमात्र ही जाने-अनजाने राम का ही अनुव्रत है तथापि जा भगवदुन्मुख होकर भगवद्-भजन करते हैं उनकी मुक्ति हो जाती है। शास्त्र-वचन है, ‘स एन मविदितो न भुनक्ति’[2] देव अविदित होकर महावाक्यजन्य परब्रह्माकाराकारित वृत्ति का गोचर न होकर जनन-मरणाविच्छेदलक्षणा संसृति से जीव के रक्षार्थ अग्रसरित नहीं होता। निद्राकाल में मन-उपहित जीव, प्राण-उपहित सत्पदवाच्य परब्रह्म में लीन हो जाता है। जैसे दिशा-विदिशा में भटकते हुए शकुनि पक्षी को विश्राम हेतु पुनः अपने बन्धनाधार काष्ठ पर ही लौट आना पड़ता है वैसे ही मन-उपहित जीव भी अपने कर्मानुसार जागृत एवं स्वप्नावस्था में दिशा-विदिशा में भटकता हुआ विश्राम हेतु पुनः अपने सत्पदवाच्य परब्रह्मरूप आधार का आश्रयण करता है। ‘स्वमपीतो भवति तस्मादेनं, स्वपितीत्याचक्षते।’[3] स्वपिति का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप को प्राप्त हो गया। प्राणिमात्र का वास्तविक स्वरूप परब्रह्म परमेश्वर ही है। ‘सदायतनाः सत्प्रतिष्ठाः सतिसंपद्य न विदुः’[4] सब प्राणी सदा-सर्वदा सत् नहीं हैं तथापि सत् उसका आयतन है। अपने सत् से सम्बद्ध होकर ही जीव विश्राम का अनुभव करता है। ‘वीनाम् प्राणिनाम् ईराः ईरयन्ति इति ईराः प्राणाः।’ भगवान् ही सम्पूर्ण प्राणियों के प्राण हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कठोप. 2। 5। 5
  2. बृ. उप. 1। 4। 15
  3. छा. उप. 6। 8। 1
  4. छा. 6। 9। 1

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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