गोपी गीत -करपात्री महाराज पृ. 150

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गोपी गीत -करपात्री महाराज

गोपी गीत 3

वल्लभाचार्यजी कहते हैं, श्रीमद्भागवत का श्लोक है - ‘स यैः स्पृष्टोऽभिदृष्टो वा संविष्टोऽनुगतोऽपि वा। कोशलास्ते ययुः स्थानं यत्र गच्छन्ति योगिनः।।’[1] अर्थात, ये श्रीराम वही हैं जिनके दर्शन, स्पर्श एवं अभिगमन मात्र से सभी कौशलवासी योगियों के उपयुग्त दिव्य-धाम को गए। राम एवं कृष्ण के विभिन्न कल्पावतारों में भी अवान्तर भेद मान्य है। ‘रामायण’ के राम पूर्णतम पुरुषोत्तम हैं। इसी तरह विभिन्न कल्प में प्रादुर्भूत कृष्ण में भी अवान्तर भेद हैं। तात्पर्य कि अपने उपास्य स्वरूप में, स्वधर्म एवं स्वकर्म में अनन्य-निष्ठा ही सिद्धि का मूलमन्त्र है यद्यपि मूलतः सम्पूर्ण ही वेदान्त-वेद्य परात्पर परब्रह्म-स्वरूप ही है।

शिव-भक्त कहता है ‘विरहीव विभो प्रियामयं परिपश्यामि भवन्मयं जगत्’ हे प्रभु! जैसे विरही जगत् को प्रियामय देखता है वैसे ही मैं भी सम्पूर्ण जगत् में आपका ही दर्शन करूँ ‘न विद्यस्तत्तत्त्वम् वयमिह तु यत्त्वन्न भवसि’ हे प्रभो! आपसे भिन्न अन्य कुछ न देखूँ। ‘शरणं तरुणेन्दुशेखरः शरणं मे गिरिराज कन्यका। शरणं पुनरेव तावुभौ, शरणं नान्यदुपैमि दैवतम्’ तरुणेन्दुशेखर भगवान् शिव ही मुझे शरण दें; गिरिराज-कन्या राजराजेश्वरी ही मुझे शरण दें।
गोस्वामी तुलसीदास में शुद्ध सिद्धान्त-निष्ठा के साथ ही साथ राघवेन्द्र रामचन्द्र स्वरूप में अनन्यता भी है; इसी तरह बहुश्रुत सज्जन भी सम्पूर्ण शास्त्रइतिहास एवं वेद-पुराणादि ग्रन्थों के अर्थ का समन्वय करते हुए यह जानता है कि सम्पूर्ण ग्रन्थों का महातात्पर्य एकमात्र कार्य-कारणातीत परात्पर परब्रह्म प्रभु ही हैं तथापि उपासना-हेतु अपने उपास्य स्वरूप में हो अनन्यनिष्ठ रहता है।
गीता’ का कथन है ‘यस्तं वेद स वेदवित्’[2] जो बीज-मूल सहित अश्वत्थ वृक्ष को जानता है वही वेदवित् है। अश्वत्थ हो जगत् है; जो इस जगत् एवं उसके अधिष्ठानभूत सर्वेश्वर परात्पर परब्रह्म को जान लेता है वही वेदविद् है। श्रीमद्भागवत में भी ऐसा ही लिखा है-‘इत्यस्यां हृदयं लोके नान्यो मद्वेद कश्चन’[3] इसका हृदय भगवान् को छोड़कर दूसरा कोई नहीं जानता। ‘मां विधत्तेऽभिधत्ते मां विकल्प्यापोह्यते त्वहम्’[4] वेद मेरा ही अभिधान कहते हैं, मेरा ही विज्ञान करते हैं, मेरा ही अनुवाद, मेरा ही आपोहन तथा मेरा ही अवशेषण करते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 9। 11। 22
  2. 15। 1
  3. 11। 21। 42
  4. 11। 21। 43

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गोपी गीत
क्रम संख्या विषय पृष्ठ संख्या
1. भूमिका 1
2. प्रवेशिका 21
3. गोपी गीत 1 23
4 गोपी गीत 2 63
5. गोपी गीत 3 125
6. गोपी गीत 4 154
7. गोपी गीत 5 185
8. गोपी गीत 6 213
9. गोपी गीत 7 256
10. गोपी गीत 8 271
11. गोपी गीत 9 292
12. गोपी गीत 10 304
13. गोपी गीत 11 319
14. गोपी गीत 12 336
15. गोपी गीत 13 364
16. गोपी गीत 14 389
17. गोपी गीत 15 391
18. गोपी गीत 16 412
19. गोपी गीत 17 454
20. गोपी गीत 18 499
21. गोपी गीत 19 537

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