हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 193

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
सिद्धान्त
नाम


सुप्त भगवत्-प्रेम को हृदय में जगाने के लिये और जाग्रत प्रेम को नित्य वर्धमान रखने के लिये नाम-स्मरण, सभी वैष्णव पुराणों और संप्रदायों द्वारा, अत्यन्त सफल उपाय बतलाया गया है। अनाम और अरूप कके साथ गाढ़ स्नेहानुबन्ध संभव नहीं है अतः जैसे-जैसे उपासना मे प्रेम की प्रधानता होती गई वैसे-वैसे प्रियतम के नाम और रूप का गौरव बढ़ता गया। भगवान के नाम और रूप भगवत-प्रेम के एकान्त आधार हैं और नित्य प्रेममय हैं। यह हमारे परिचित नाम-रूपों से भिन्न हैं, जो माया के अंग बने हुए हैं और उसी के समान नाशवान हैं। मायिक नाम नामी की नाम वाले की-उपाधि मात्र हैं और उससे सर्वथा भिन्न पदार्थ हैं। भगवन्नम भगवान की उपाधि नहीं है, वह स्वयं भगवान है। भगवान में नाम और नामी का संपूर्ण अभेद माना गया है।

सोलहवीं शती की भक्ति संप्रदायों में नामोपासना के तीन रूप दिखलाई दिये-नाम-जप, नाम-गान और नाम-सेवा। नाम-जप अधिकतर एकान्त में किया जाता है और सर्वथा व्यक्तिगत वस्तु है। नाम-गान व्यक्तिगत की अपेक्षा-सामुदायिक अधिक है। नाम-गान को नाम-कीर्तन भी कहते हैं। सामुदायिक नाम-गान के द्वारा, चैतन्य महाप्रभु ने, बंगाल में भगवत-प्रेम की मंदाकिनी बहाई थी। दक्षिण के संतों ने भी नाम-गान पर खूब भार दिया है।

राधावल्लभीय उपासना आरंभ से ही एकान्त व्यक्तिनिष्ठ रही है। यह प्रेम की उपासना है। श्री ध्रुवदास कहते हैं, ‘और सब भजन में गोष्ठी है, स्नेह में गोष्ठी कहा !’ समुदाय चाहे कितना भी अनुकूल क्यों न हो प्रेमी की इच्छा सबसे निराले रहने की ही होती है। प्रेम स्वरूप श्याम श्यामा भी प्रीति-परवश बनकर सखियों की भीड़ से न्यारे रहने की आकांक्षा करते हैं। वे सब सखियों की दृष्टि बचाकर प्रेम-गली को ही ताकते रहते हैं।

‘चलिरी भीरतँ न्यारेई खेलैं।’
‘श्री हरिदास के स्वामी श्यामा फिरत न्यारेई न्यारे,
सखियन की दृष्टि बचावत तकि तक खोरी।’[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. केलिमाल- 100, 105

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः