हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 291

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
नागरीदास जी


राग भैरौं

प्‍यारी जोर करज तन मोरत।
बंक विशाल छबीले लोचन भ्रुव विलास चित चोरत।
कनक लता सी आगें ठाड़ी मन अरू दृष्टि अगोरत।
उघरी वर कुच-तटी-पटी तें छवि मजदिहि फोरत।।
अति रस विवस पियहिं उर लावत केलि-कलोल झकोरत।
नागरिदास ललितादि निरखि सुख लें वालइ तृन तोरत।।

आजु सखि अदभुत भांति निहारि।
प्रेम सुदृढ़ की ग्रंथि परि गई गौर-श्‍याम भुज चारि।।
अबही प्रात पलक लागी हैं मुख पर श्रमकन वारि।
नागरीदास रस पिवहु निकट हृै अपने वचन विचारी।।

मलार

कनक पत्रावली झूंमत घंघट।
लहेंगा पीत कंचुकी कसूंभी तैसाई गोरे तन लसत नील पट।।
केसर की आड़ जराइ को वेदा तैसीय मुख पर रूरत ललित लट।
वर वानिक छवि रहि पिय नैनवि नागरीदास धीरज न रह्मो घट।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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