हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 288

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
नागरीदास जी


पद

व्‍यास सुधा रस सागर ते प्रगटे शशि श्री हरिवंश गुसाई।
न घटे छिन-छिन होत उदोज जु कीरति तीनहुं लोकनि छाई।।
चकोर अनन्‍यनि को मधु प्‍यास दिखावत केलिज्‍यों दर्पन झांई।
भई सब नागरी दासि खवासी श्री राधिका वल्‍लभ जू मन भाई।

खरोई कठिन है भजन ढिंग ढारिवों।
तमकि सिंदूर मेल माथे पर साहस सिद्ध सती को सो जरिवों।।
रण के चाइ घाइल ज्‍यों घृमे मुरे न गरूर सूर कैसी लरिवो।
नागरि दास सुगम जिन जानों श्री हरिवंश पंथ पग धरिवो।।

प्रबल प्रेम वर तत्‍व पायो।
जाको आदि अंत, मधि, नाही रसिक नृपति जू अदिख दिखायो।।
दुर्लभ दुर्घट दुर्गम ठाहर जाकों प्रभु अलि मारग धायो।
नागरीदास श्रीव्‍यास सुवन जू अकह भजन निरवधि पकरायो।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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