हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 284

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
नागरीदास जी


'नागरीदास जी ने नित्‍य विहार को हृदय में धारण करके पद और साखियों[1] के द्वारा श्‍याम-श्‍यामा की केलि का वर्णन किया है। उन्‍होंने अपनी वाणी में हित जी के धर्म का वर्णन किया है और हितजी को सर्वोपरि माना है।

उन्‍होंने रसिक अनन्‍यता को अत्‍यन्‍त दुर्लभ और त्रिगुण के क्षेत्र से परे की वस्‍तु बतलाया है।’

वानी श्री हरिवंश की धर्मी-धर्म प्रतीति।
करी नागरीदास जू भगवत मुदित सु रीति।।[2]

नागरीदास जी राधावल्‍लभीय संप्रदाय के उन प्रारंभिक रसिक महानुभावों में से हैं जिन्‍होंने अपने चरित्र और वाणी द्वारा संप्रदाय की नींव को सुदृढ़ बनाया है। ध्रुवदास जी को जिस प्रकार नागरीदास जी को उसके उपासना-मार्ग को सुव्‍यवस्थित बनाने का गौरव प्राप्‍त है। सेवक वाणी में रास-रीति और उपासना-पद्धति दोनों का ही निर्धारण सेवक जी ने किया है। उपर्युक्‍त दोनों महात्‍माओं ने अपनी वाणियों में उनको पल्‍लवित किया है।

नागरीदास नाम के तीन वाणीकार महात्‍मा हुए है। काल-क्रम में प्रस्‍तुत नागरीदास जी सबसे प्रथम हैं। इनके बाद में स्‍वामी हरिदास जी की शिष्‍य-परंपरा में एक नागरीदास जी हुए हैं। तीसरे नागरीदास पुष्टि मार्ग में हुए हैं। यह कृष्‍ण-गढ़ के राजा थे और नागरीदास जी के नाम से प्रसिद्ध हैं।

लेखक ने नागरीदास जी के 937 दोहे और 331 पद देखे हैं। इनके अनेक पद प्रवाहशील व्रज-भाषा में हैं। कुछ पदों में बुंदेलखंडी शब्‍दों का पुट अधिक है और शब्‍दों की तोड़-मरोड़ भी काफी हैं किन्‍तु प्रत्‍यक्ष अनुभव की मोहर हर शब्‍द पर लगी हुई है। इनका वाणी-रचना-काल सं. 1620 से सं. 1660 तक माना जा सकता है। इन्‍होंने विहार-वर्णन के साथ प्रेम-भजन का बड़ा सूक्ष्‍म और भाव-पूर्ण वर्णन किया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दोहों
  2. भवगत मुदित जी कृत चरित्र का संक्षिप्‍त गद्य रूपान्‍तर।

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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