श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
नागरीदास जी
जिनके बल निधरक हुते ते बैरी भये बान। 'नागरीदास जी ने बरसाने में गहवर बन की पहाड़ी पर अपनी कुटी बनाई।[1] एक दिन इसी स्थान पर उनको सखियों सहित श्री राधा के प्रत्यक्ष दर्शन हुए। नागरीदास जी प्रेम और सौन्दर्य की उस परात्पर सीमा को सामने उपस्थित देख कर मूर्च्छित हो गये। उनकी उस स्थिति में श्री राधा ने उनसे कहा, 'हम नित्य-प्रति यहां खेलने आती है। हमको अर्ध रात्रि के समय भूख लगती है। इस समय यदि हमको कुछ भोजन कराओ तो शांति हो। भूखे है हम आधी रेन, या बिरियां ख्यावे तब चैन। 'नागरीदास जी ने परम हर्षित होकर उसी समय श्रीराधा को भोजन कराया और उसी दिन से अर्ध रात्रि के समय खीर और पूडि़यो का भोग रखने लगे। उस दिन श्रीराधा ने उनसे दूसरी बात यह कही कि तुम इस जगह मेरा स्थान[2] बनवाओ और प्रति वर्ष मेरी जन्म गांठ मनाया करो। बरसाने में स्थल करो, मेरी बरस गांठ उर धरो। 'नागरीदास जी ने अपने साथ रहने वाली रानी भागमती की सहायता से बरसाने में श्री राधा के मंदिर का निर्माण कराया और प्रति वर्ष बड़ी धूम धाम के साथ उनकी जन्म गांठ मनाने लगे।[3] 'नागरीदास जी के पास एक सिंह रहता था, जो दिन में वन में घूमता रहता और रात को उनकी कुटी पर पहरा देता था। जन्मोत्सवों की धूम धाम के कारण सब लोग उनको धनवान मानने लगे थे और कई बार लोगों ने उनकी कुटी में चोरी करने की चेष्टा की, किन्तु सिंह के कारण कभी सफल नहीं हुए। एक बार अनेक रसिक उपसक विच-रण करते हुए उनकी कुटी पर पहुंच गये। नागरीदास जी स्वयं उनके भोजनादि का प्रबंध करने के लिये गांव की और चले तो सिंह कुत्ते की तरह उनके पीछे हो लिया और जब वे सीधा-सामान लेकर वापस आने लगे तो वह उनका मार्ग रोक कर खड़ा हो गया। उन्होंने सामान की पोटली उसके ऊपर रख दी और कुटी पर आकर रसिकों का आतिथ्य-सत्कार किया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ यह स्थान आजकल मोर कुटी के नाम से प्रसिद्ध है।
- ↑ मंदिर
- ↑ 'रसिक अनन्य माल' में भागमती जी का चरित्र भी दिया हुआ है। बरसाने में 'स्थल' (मन्दिर) बनवाने का उल्लेख उसमें भी है-
अरू स्थल करि लीला थर्पी, गुरू व्रजवासुनि को निधि अर्पी।
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