हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 283

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
नागरीदास जी


'गुसाई नागरवर जी ने प्रसन्‍न होकर उनको अपने हृदय से लगा लिया और निन्‍दकों को उनकी उच्‍च स्थिति का ज्ञान कराकर शान्‍त कर दिया। किन्‍तु हित-धर्मियों ने उनसे मत्‍सर करना नहीं छोड़ा और वे उनके भय से वृन्‍दावन छोड़कर बरसाने में बस गये। अपने चित की उस समय की निराशा और असहायता को उन्‍होंने निम्‍न लिखित साखी में व्‍यक्‍त किया है,

जिनके बल निधरक हुते ते बैरी भये बान।
तरकस के सर सांप हृै फिरि-फिरि लागे खान।।

'नागरीदास जी ने बरसाने में गहवर बन की पहाड़ी पर अपनी कुटी बनाई।[1] एक दिन इसी स्‍थान पर उनको सखियों सहित श्री राधा के प्रत्‍यक्ष दर्शन हुए। नागरीदास जी प्रेम और सौन्‍दर्य की उस परात्‍पर सीमा को सामने उपस्थित देख कर मूर्च्छित हो गये। उनकी उस स्थिति में श्री राधा ने उनसे कहा, 'हम नित्‍य-प्रति यहां खेलने आती है। हमको अर्ध रात्रि के समय भूख लगती है। इस समय यदि हमको कुछ भोजन कराओ तो शांति हो।

भूखे है हम आधी रेन, या बिरियां ख्‍यावे तब चैन।

'नागरीदास जी ने परम हर्षित होकर उसी समय श्रीराधा को भोजन कराया और उसी दिन से अर्ध रात्रि के समय खीर और पूडि़यो का भोग रखने लगे। उस दिन श्रीराधा ने उनसे दूसरी बात यह कही कि तुम इस जगह मेरा स्‍थान[2] बनवाओ और प्रति वर्ष मेरी जन्‍म गांठ मनाया करो।

बरसाने में स्‍थल करो, मेरी बरस गांठ उर धरो।

'नागरीदास जी ने अपने साथ रहने वाली रानी भागमती की सहायता से बरसाने में श्री राधा के मंदिर का निर्माण कराया और प्रति वर्ष बड़ी धूम धाम के साथ उनकी जन्‍म गांठ मनाने लगे।[3]

'नागरीदास जी के पास एक सिंह रहता था, जो दिन में वन में घूमता रहता और रात को उनकी कुटी पर पहरा देता था। जन्‍मोत्‍सवों की धूम धाम के कारण सब लोग उनको धनवान मानने लगे थे और कई बार लोगों ने उनकी कुटी में चोरी करने की चेष्‍टा की, किन्‍तु सिंह के कारण कभी सफल नहीं हुए। एक बार अनेक रसिक उपसक विच-रण करते हुए उनकी कुटी पर पहुंच गये। नागरीदास जी स्‍वयं उनके भोजनादि का प्रबंध करने के लिये गांव की और चले तो सिंह कुत्‍ते की तरह उनके पीछे हो लिया और जब वे सीधा-सामान लेकर वापस आने लगे तो वह उनका मार्ग रोक कर खड़ा हो गया। उन्‍होंने सामान की पोटली उसके ऊपर रख दी और कुटी पर आकर रसिकों का आतिथ्‍य-सत्‍कार किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह स्‍थान आजकल मोर कुटी के नाम से प्रसिद्ध है।
  2. मंदिर
  3. 'रसिक अनन्‍य माल' में भागमती जी का चरित्र भी दिया हुआ है। बरसाने में 'स्‍थल' (मन्दिर) बनवाने का उल्‍लेख उसमें भी है-

    अरू स्‍थल करि लीला थर्पी, गुरू व्रजवासुनि को निधि अर्पी।

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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