हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 279

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


राग पट

सुभग गोरी के गोरे पांइ।
श्‍याम काम वश जिनहिं हाथ गहि राखत कंठ लगाई।।
कोटि चन्‍द नख मनि पर वारो गति पर हंस के राइ।
नूपुरि ध्‍वनि पर मुरली वारो जावक पर व्रजराइ।।
नांचत रास रंग मंह सरस सुधंग दिखावत भाइ।
जमुना जल के दूरि करत मल चरननि पंक छुटाइ।।
सघन कुंज वीथिन में पौढ़त कुसु मनि सेज बनाइ।
क़ुंकुम रज कर्पूर धूरि भुरि की छवि वरनी न जाइ।।
धनि वृषभान धन्‍य बरसानों धनि राधा की माई।
तहां प्रगटी नट नागरि खेलत पति सों रति पछिताई।।
जाके परस सरस वृन्‍दावन बरसत सुखनि अघाई।
ताके शरन रहत काको डरू कहत व्‍यास समुझाई।।

राग कमोद

रसिक शिरोमनि ललना लाल मिले सुर गावत।
मत्‍त मधुर विवि धुनि सुनि कोकिल कूजित तन-मन-ताप बुझावत।।
मोर मंडली नांचति प्रमुदित आनंद नैननि नीर बहावत।
मन्‍द-मन्‍द घन वृन्‍द गरजि लजि सीतल जल सीकर बरसावत।।
नाद-स्‍वाद मोहे गो, गिरि, तरू, खग, मृग, सर, सरिता सचुपावत।
वृन्‍दाविपिन विनोदी राधारवन विनोद व्‍यास मन भावत।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः