हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 278

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्रीहरिराम व्‍यास (सं. 1549-1655)


रस के पद

राधा मोहन सहज सनेही।
सहज रूप गुण सहज लाडि़ले एक प्रान दो देही।।
सहज माधुरी अंग अंग प्रति सहज बने बन गेही।
व्‍यास सहज जोरी सौ रे मन, सहज प्रीति करि लेहि।।
नव जोवन छवि फबति किशोरिहिं देखत नैन सिरात।
वलि वलि सुखद मुखारविंद की चंद-वृन्‍द दुरि जात।।
गौर ललाट पटल पर शोभित कुंचित कच अरझात।
मानहुं कनक कंज मकरंदहिं पीवत अलि न अघात।।
दुख मोचन लोचन रतनारे फूल जनु जलजात।
चंचल पलक निकट श्रवननि के पिसुनि कहत जनुवात।।
नक वेसिर वंशी के संभ्रम भोंह मीन अकुलात।
मनि ताटंक कमठ घूघंट डर जाल बंधे पछितात।
स्‍याम कंचु की मांझ सांझ फूले कुच कलश न मात।
मानहुं मद गयंद कुंभनि पर नील वसन फहिरात।
नख शिख सहज सुंदरिहि विलसत सुकृती स्‍यामल गात।
यह सुख देखत व्‍यास और सुख उड़त पुराने पात।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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