श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त
हित वृन्दावन
कही नित केलि रस खेल वृन्दाविपिन ध्रुवदासजी ने बतलाया है- ‘जिन कोमल फूली लतओं में युगल रस-विहार करते हैं, वहाँ की बल्लरियाँ सकुच कर प्रेम-विवस हो जाती हैं’- कोमल फूली लतनि में करत केलि रस माँहि। हित प्रभु ने प्रेम-स्वरूप वृन्दावन को इस भूतल पर ही स्थित माना हे और इसके अतिरिक्त किसी अन्य गौलोकस्थ वृन्दावन का उल्लेख कहीं नहीं किया। प्रेमोपासना भाव की उपासना है और प्रकट-भाव ही उपासनीय होता है। अप्रकट-भाव को उपासना नहीं की जा सकती। प्रकट-वृन्दावन ही नित्य-वृन्दावन है। ध्रुवदास जी बतलाते हैं- 'यद्यपि वृन्दावन पृथ्वी पर स्थित है, किन्तु वह सबसे ऊँचा है। जिसकी वंदना स्वयं विष्णु करते हैं, उसकी समता मैं किसके साथ करूं? ‘जो लोग वृन्दावन को छोड़ कर अन्य तीर्थो में जाते है वे विमल चिंतामणि की छोड़ कर कौड़ी के लिये ललचाते हैं।‘ |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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