हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 89

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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सिद्धान्त
हित वृन्‍दावन

प्रेम के सहज-विलास में प्रेरक प्रेम की दो परिणतियाँ होती हैं-वृन्‍दावन और सहचरी-गण। जड़ता ओर चेतनता प्रेम की दो अवस्‍थायें हैं। एक अवस्‍था में जो प्रेम जड़वत् प्रतीत होता है, वही अपनी दूसरी अवस्‍था में चेतन दिखलाई देता है। श्रीहित प्रभु ने श्री राधा के हृदय में रस के द्वारा उत्‍पन्न जडि़मा को अपने एक श्‍लोक में लक्षित किया है - ‘श्री राधे, हृदि ते रसेन जडि़मा ध्‍यानेऽस्‍तु में गोचर:।’ श्रीराधा के हृदय में रस-जडि़मा सदैव छाई रहती है और उस के ऊपर चेतन-प्रेम के सम्‍पूर्ण विलास होते रहते हैं। जडि़मा प्रेम की घनीभूत स्थिति है। प्रेम सघन बन कर जड़वत् प्रतीत होता है। प्रेम के नित्‍य विहार में जड़ीभूत प्रेम के आधार पर चेतन प्रेम की क्रीड़ा होती हे और उसके द्वारा एक अद्भुत प्रेम-स्‍वरूप का प्रकाश होता है। प्रेम की जड़ता वृन्‍दावन में और चपलता सहचरियों में मूर्तिमती हुई है।

यह जड़ता प्रेम की जड़ता होने के कारण, स्‍वभावत: चिन्‍मय होती है, ज्ञानमय होती है। हितप्रभु की-

बन की कुंजनि-कुंजनि डोलनि,
निकसत निपट साँकरी बीथिन परसत नांहि निचोलनि।।[1]

इन पंक्तियों का आशय स्‍पष्‍ट करते हुए सेवक जी ने कहा है - ‘श्री हरिवंश ने, उक्‍त पद में, श्‍यामश्‍यामा के उस बन विहार का वर्णन किया है जिसमें वे दोनों अत्‍यन्‍त सघन-वीथियों में से इस प्रकार निकल जाते हैं कि उनके वस्‍त्रों का स्‍पर्श भी लताओं से नहीं होता और यह उस स्थिति में जब दोनों प्रेम से विह्वल होते हैं और उनको अपनी देह का भी अनुसंधान नहीं होता। वे प्रेम-मग्‍न दशा में एक क्षण के लिये एक दूसरे से हट कर इधर-उधर चलने लगते है और फिर व्‍याकुल होकर डगमगाते हुए एक दूसरे से मिल जाते हैं। उनका अत्‍यन्‍त स्‍नेह देखकर वृन्‍दावन ही उनको मार्ग देता चलता है।'

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हि. च.

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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