हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 369

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
श्री हित रूपलाल काल (सं. 1775-1875 तक)

ध्रुवदास जी का काल निकुंज लीला के स्वरूप का निर्माण काल था। ध्रुवदास जी ने प्रेम की इन अनाद्यनंत लीलाओं का स्वरूप भागवत में वर्णित लीलाओं से सर्वथा विलक्षण निर्दिष्ट कर दिया। यहाँ तक कि उन्होंने राधाश्याम सुन्दर के प्रसिद्ध नाम ‘नंदनंदन’ और ‘वृषभानु नदिनी’ का भी उपयोग, उनके व्रजलीला से संबन्धित होने के कारण, अपनी लीलाओं में नहीं किया है। भगवत मुदित जी ने ध्रुवदास जी के चरित्र में लिखा है कि उन्होंने व्रज के विनोद ‘न्यारे’ कर दिये- ‘व्रज विनोद न्यारे करि दीने।’ श्री हित रूप लाल काल में निकुंज लीला का स्वरूप तो वही रहा किन्तु लीला गान की नई दिशाओं की खोज की गई और सम्प्रदाय के साहित्य में नये रूप विधान उपस्थित किए गये। श्री हिताचार्य ने अपने एक पद में श्रृंगार लीला के गान का प्रयोजन श्रीराधा के सुकुमार चरण कमलों में रति प्राप्त करना बतलाया है,

हित हरिवंश यथामति वरणत कृष्ण रसामृत सार ।
श्रवण सुनत प्रापक रति राधा पद अंबुज सुकुमार ।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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