श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
सिद्धान्त-प्रमाण-ग्रन्थ
इस अंग की पूर्ति वैष्णव आगम ने की है जो अपने को वेदों का ही एक अंग मानता है और अपना सम्बन्ध वेद को ‘एकायन’ शाखा से बतलाता है। छान्दोग्य उपनिषद[3] में ’एकायन’ विद्या का नामोल्लेख है किन्तु उसके प्रतिपाद्य, विषय की ओर कोई संकेत नहीं है। आज कल ‘पांचरात्र’ ही वैष्णवगामों का प्रतिनिधि माना जाता है। शतपथ ब्राह्मण[4] में पांचरात्र सत्र का वर्णन मिलता है जिसको नारायण ने समस्त प्राणियों पर अधिपत्य प्राप्त करने के लिये पांच दिनों तक किया था। किन्तु इस सत्र के अध्यात्मिक रहस्यों का पता नहीं चलता। उत्पल की स्पन्द कारिका में पांचरात्र श्रुति, पांचरात्र उपनिषद एवं पांच रात्र संहिता से अनेक उद्वरण दिये हैं, किन्तु अब यह ग्रन्थ प्राप्त नहीं होते हैं। महाभारत के नारायणीयोपाख्यान[5] में सर्वर प्रथम इस आगम के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है। पांचरात्र का दूसरा नाम ‘भागवत’ या ‘सात्वत’ है। वैष्णवों का दूसरा आगम ‘वैखानस आगम’ है, जिसका सम्बन्ध कृष्ण यजुर्वेद की ‘औखेय’ शाखा से बतलाया जाता है। यह आगम, पांचरात्र के समान प्राचीन एवं प्रामाणिक होने पर भी, उतना ही प्रख्यात नहीं है। इस आगम के केवल चार ग्रन्थ अब तक उपलब्ध हुए हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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