हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 487

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
संस्कृत-साहित्य

इस लोक में जो मुमुक्ष हैं वे धन्य हैं, जो हरि-भजन परायण है वे धन्य धन्य हैं। उनसे भी उत्कृष्‍ट वे हैं जिनकी रति श्रीकृष्‍ण के चरण-कमल में हैं। उनसे भी अधिक धन्य ‘रुक्मिणी पति श्रीकृष्‍ण के भक्त है’ उनसे भी अधिक प्रशंस्य वे हैं जो यशोदानंदन श्रीकृष्‍ण के प्रिय हैं। उनसे भी अधिक धन्य सुबल आदि गोपों के सखा श्रीकृष्‍ण के प्रिय हैं। उनसे अधिक धन्य वे है जो गोपीजनों के वल्लभ श्रीकृष्‍ण का भजन करते हैं। किन्तु श्री वृन्दावनेश्वरी के परम-रस में विवश बने हुए श्रीकृष्‍ण की आराधना करने वाले सर्वश्रेष्‍ठ हैं।

युगल प्रेमरस अ‍वधि में परयौ प्रबोध मन जाइ ।
वृन्दावन रस माधुरी गाई अधिक लड़ाइ ।।

किंतु कुछ शतकों में श्री चैतन्य-स्मरण के श्‍लोक लगे देखकर बुद्धि चक्कर में पड़ जाती है। राधा सुधानिधि के वंगीय संस्करण में भी श्री चैतन्य-वंदना के श्‍लोक लगे हुये है किंतु वे सब आधुनिक है और राधा सुधानिधि की प्राचीन प्रतियों में नहीं मिलते। वृन्दावन शतकों के संबंध में यह बात नहीं कही जा सकती। हम देख चुके है कि एक शतक पर श्री भगवत् मुदित की टीका मिलती हैं। यह सं. 1707 में पूर्ण हुई है। इसमें श्री चैतन्य स्मरण के चार श्‍लोक मिलते हैं। राधावल्लभीय संप्रदाय के श्री चन्द्रलाल गोस्वामी ने पांच शतकों का व्रजभाषा पद्य में अनुवाद किया हैं। इनमें से तीन शतकों में श्री चैतन्य स्मरण के श्‍लोक लग रहे हैं। इस टीका में रचना-काल नहीं दिया है किंतु यह विक्रम की उन्नीसवीं शती के पूर्वार्ध में रची गई हैं, यह निश्चित हैं। ऐसी स्थिति में दो‍ विकल्प सामने आते हैं,

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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