हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 488

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
संस्कृत-साहित्य
  1. या तो वृन्दावन शतककार प्रबोधानंद और श्री चैतन्‍य चंद्रामृतकार प्रबाधानंद को एक मानकर गौड़ीय संप्रदाय के अनुयायियों ने शतककार के निकुञ्ज गमन के थोडे़ दिन बाद ही उनके कुछ श‍तकों में श्री चैतन्‍य स्‍मरण के श्‍लोक लगा दिये हैं।
  2. अथवा जिन प्रबोधानंद ने श्रीहित प्रभु की कृपा प्राप्‍त की थी वे पहिले श्री चैतन्‍य के भी कृपापात्र रह चुके थे। भगवत् मुदित जी कृत श्री प्रबोधानंद के चरित्र से ज्ञात होता है कि सरस्‍वती पाद काशी से वृंदावन आये थे और महापंडित होने के साथ पूरे अविनीत थे। प्रकाशनंद के संबंध में भी श्री कृष्‍णदास कविराज ने चैतन्‍य चरितामृत में यही बात लिखी है। श्री चैतन्‍य की कृपा से ही प्रकाशानंद भक्ति-रस की और उन्‍मुख हुऐ थे और उन्‍हीं की प्रेरणा से वे वृंदावन आये थे। वृंदावन में वे एक अन्‍य महान् विभूति (श्री हित प्रभु) की और आकर्षित हो गये और उनके द्वारा प्रवर्तित रस रीति को ग्रहण करके भजन और काव्‍य-रचना करने लगे। श्री चैतन्‍य ने उनको राधाकृष्‍णागोपासना की और खींचा था,अत: श्री प्रबोधानंद द्वारा उनकी वंदना करना स्‍वाभाविक है। किंतु, जिन्‍होंने उनको वृंदावन संबंधी नवीन दृष्टि प्रदान की थी उन श्रीहित हरिवंश की वंदनाएँ भी उनके ग्रंथों में अवश्‍य रही होंगी।

अत: यह तो निर्विवाद है कि श्री प्रबोधानंद के ग्रंथों में व्‍यापक परिवर्तन किये गये हैं। श्री सुशीलकुमार दे ने भी लिखा है कि संस्‍कृत ग्रंथों की अनेक रिपोर्टों और कैटलौगों में श्री प्रबोधानंद के वृंदावन शतकों का उल्‍लेख हुआ है किंतु इन शतकों के जितने भाग अभी तक प्रकाशित हुए हैं उनमें भिन्‍न दिखलाई देते हैं।[1]

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. But the parts of the latter work, which have so far been printed, do not contain this Series of verses. Early history of the Vaisnava Faith & movement in Bengal. Pp. 98-99 Foot note.

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः