हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 486

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

Prev.png
साहित्य
संस्कृत-साहित्य

श्री चैतन्य महाप्रभु के कृपापात्र कवि कर्णापूर श्री प्रबोधानंद सरस्वती के सम-सामयिक थें। इनका ‘आनंद वृन्दावन चम्पू’ नामक ग्रंथ प्रसिद्ध है। इसमें गौड़ीय पद्धति के अनुसार वृन्दावन का और वहाँ की लीला का वर्णन किया गया हैं। इस ग्रन्थ के प्रथम स्तवक में वृन्दावन का अत्यंत रमणीय वर्णन करने के बाद कवि कर्णपूर ने बतलाया है कि इस वृन्दावन में व्रजपुर: पुरंदर की एक राजधानी है, ‘यत्र काचन राजधानी व्रजपुर: पुरंदरस्य’, जिसके राजा-रानी नंद-यशोदा है। इस राजधानी में अनेक गोप और गोप-कन्याएं निवास करती हैं। गोप-कन्याओं में श्री राधा और चंद्रावली सर्वश्रेष्‍ठ हैं। द्वितीय स्तवक में श्रीकृष्‍ण की जन्म लीला का वर्णन है और फिर शेष बीस स्तवकों में उनकी बाल्य, कौमार और कैशोर, लीलाओं का वर्णन श्रीमद्भागवत के आधार से हुआ हैं।

इस ग्रन्थ के साथ तुलना करने पर ज्ञात होता है कि वृन्दावन महिमामृत की रचना इससे बिलकुल भिन्न आधार पर हुई हैं। आनंद वृन्दावन चम्पू में जिस वृन्दावन का वर्णन है यह सरस्वती जी का ‘गोष्‍ठ वृन्दावन’ हैं। इस वृन्दावन की लीलायें नित्य होते हुये भी ‘स्वारसिकी’ हैं, प्रगट लीलानुसारिणी है। सरस्वतीपाद का वृन्दावन ‘रसमयी राधा निकुंज वाटी’ हैं और उसमें होने वाली लीलायें प्रगट लीलानुसारिणी नहीं हैं। वे इस वृन्दावन को अपने गिनाये हुये अन्य सब वृन्दावनों से तो श्रेष्‍ठ मानते ही हैं, वहाँ क्रीड़ा करने वाली श्रीकृष्‍ण के स्वरूप को भी उनके अन्य सब स्वरूपों से श्रेष्‍ठ मानते हैं।

[1]

इस प्रकार ग्रन्थ का अन्तरंग परीक्षण उसको सर्वथा राधावल्लभीय रचना सिद्ध करता हैं। ध्रुवदास जी ने भी अपनी ‘भक्त नामावलि’ में श्री प्रबोधानंद को ‘वृन्दावन-रस-माधुरी’ का गायक बताया हैं, और अपने ब्रज भाषा ‘वृन्दावन शतक’ की प्रेरणा सरस्वती जी से ग्रहण की हैं।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. धन्योलोके मुमुक्षु‍र्हरिभजन परो धन्य-धन्यस्ततोसौ,
    धन्यो य: कृष्‍णपादाम्वुजरति परमो रुक्मिणीश: प्रियोऽत:।
    याशोदेय प्रियोऽत: सुबल सुहृदतो गोपकान्ता प्रियोऽत:,
    श्रीमद्वृन्दावनेश्वर्यति रस विवशाराधक: सर्वमूर्घ्नि: ।। (2-34)

संबंधित लेख

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः