श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी
हिताचार्य ने भी अपने एक पद में श्यामा-श्याम की क्रीडा का विस्तार ‘खोरी, खिरक, गिरि गहवर’ तक बतलाया है, ‘ये दोउ खोरि खिरक गिरि गहवर बिहरत कुँवरि कंठ भुजमेलि’[1] अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण चाचा जी ने निकुंज-लीलाओं के साथ अनेक व्रज-लीलाओं का भी गान किया है किन्तु सर्वत्र जैसा हम कह चुके हैं, उनमें श्री राधा का प्राधान्य रखा है। चाचा जी ने अनेक ऐसी लीलायें लिखी हैं जो उनके पूर्व राधावल्लभीय साहित्य में नहीं मिलतीं। उनकी चौबीस छद्म लीलायें प्रसिद्ध हैं जिनमें श्रीकृष्ण अनेक छद्म-वेष धारण करके बरसाने में स्थित श्री राधा से मिलते हैं। इन लीलाओं में श्रीकृष्ण की अदम्य प्रीति का मार्मिक प्रकाशन हुआ है। इसके अतिरिक्त नारद लीला, महादेव लीला, शिवजोगी लीला, जोगीश्वरी लीला आदि में उन्होंने श्रीकृष्ण और श्री राधा के शैशव काल में उपरोक्त देवों का उपस्थित होना विनोद पूर्ण ढंग से वर्णन किया है। चाचा जी ने कई साँझी लीलायें भी लिखी हैं जिनका आरंभ उनके गुरु श्री हित रूपलाल जी कर चुके थे। लोक के अनुकरण पर उन्होंने एक ‘सुवटा’ भी लिखा है जो साँझी उत्सव का ही अंग है। इसमें श्री राधा अपने प्रिय ‘सुवटा’ (कीर) को नन्दगाँव भेज कर सखी वेष धारी श्रीकृष्ण को साँझी खेलने के लिये बुलाती है। उत्सवों के पद भी चाचा जी ने प्रचुर संख्या में लिखे हैं। उन्होंने कई ऐसे उत्सवों का भी गान किया है जिनके पद उनके पूर्व नहीं मिलते जैसे रथ यात्रा, अन्नकूट, दशहरा आदि के पद। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (हि.च. 46)
संबंधित लेख
विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज