हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 388

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

हिताचार्य ने भी अपने एक पद में श्यामा-श्याम की क्रीडा का विस्तार ‘खोरी, खिरक, गिरि गहवर’ तक बतलाया है,

‘ये दोउ खोरि खिरक गिरि गहवर बिहरत कुँवरि कंठ भुजमेलि’[1]

अपनी इसी प्रवृत्ति के कारण चाचा जी ने निकुंज-लीलाओं के साथ अनेक व्रज-लीलाओं का भी गान किया है किन्तु सर्वत्र जैसा हम कह चुके हैं, उनमें श्री राधा का प्राधान्य रखा है। चाचा जी ने अनेक ऐसी लीलायें लिखी हैं जो उनके पूर्व राधावल्लभीय साहित्य में नहीं मिलतीं। उनकी चौबीस छद्म लीलायें प्रसिद्ध हैं जिनमें श्रीकृष्ण अनेक छद्म-वेष धारण करके बरसाने में स्थित श्री राधा से मिलते हैं। इन लीलाओं में श्रीकृष्ण की अदम्य प्रीति का मार्मिक प्रकाशन हुआ है। इसके अतिरिक्त नारद लीला, महादेव लीला, शिवजोगी लीला, जोगीश्वरी लीला आदि में उन्होंने श्रीकृष्ण और श्री राधा के शैशव काल में उपरोक्त देवों का उपस्थित होना विनोद पूर्ण ढंग से वर्णन किया है।

चाचा जी ने कई साँझी लीलायें भी लिखी हैं जिनका आरंभ उनके गुरु श्री हित रूपलाल जी कर चुके थे। लोक के अनुकरण पर उन्होंने एक ‘सुवटा’ भी लिखा है जो साँझी उत्सव का ही अंग है। इसमें श्री राधा अपने प्रिय ‘सुवटा’ (कीर) को नन्दगाँव भेज कर सखी वेष धारी श्रीकृष्ण को साँझी खेलने के लिये बुलाती है। उत्सवों के पद भी चाचा जी ने प्रचुर संख्या में लिखे हैं। उन्होंने कई ऐसे उत्सवों का भी गान किया है जिनके पद उनके पूर्व नहीं मिलते जैसे रथ यात्रा, अन्नकूट, दशहरा आदि के पद।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (हि.च. 46)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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