हित हरिवंश गोस्वामी -ललिताचरण गोस्वामी पृ. 389

श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी

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साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी

राधावल्लभीय सम्प्रदाय में उत्सवों का संख्या अपेक्षाकृत कम है। यहाँ वही उत्सव ग्रहण किये गये हैं जो नित्य रास-विलास की भावना के अनुकूल पड़ते हैं। अतिवल्लभ जी ने बतलाया है की वही नैमित्तिक उत्सव सम्प्रदाय में गृहीत हैं जो नित्य सेवा के संग बन गये हैं और सूक्ष्मरूप से नित्य सेवा के संग रहते हैं,

नैमित्तिक उत्सव जिते नित्य कृत्य के अंग।
सूक्ष्म स्थूल सदा रहै नित्य कृत्य के संग।।[1]

दशहरा, रथयात्रा, अन्नकूट आदि का राधावल्लभीय नित्य सेवा से कोई संबंध नहीं है और इन उत्सवों से संबंधित चाचा जी के पदों का औचित्य लोक संग्राहकता की दृष्टि से ही ठहरता है।

चाचा जी ने सम्प्रदाय के इतिहास को भी सुव्यवस्थित करने की चेष्टा की है। ‘रसिक अनन्य परचावली’ में उन्होंने अपने काल तक के रसिक भक्तों का परिचय बड़ी खोज के साथ उपस्थित किया है। ‘श्री हरिवंश सहस्रनाम’ में हिताचार्य के जीवन से संबंधित अनेक नई घटनाओं का परिचय मिलता है। ‘श्री हितरूप चरित्र बेली’ में उन्होंने अपने गुरुदेव का जीवन वृत्त दिया है। चाचा जी विनोदी स्वभाव के महात्मा थे। उनकी रची हुई अनेक लीलाओं में हास्य विनोद का पुट मिलता है। उप-देशात्मक रचनाओं में भी वे बड़ी मीठी चुटकियां लेते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (अष्टयाम)

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विषय पृष्ठ संख्या
चरित्र
श्री हरिवंश चरित्र के उपादान 10
सिद्धान्त
प्रमाण-ग्रन्थ 29
प्रमेय
प्रमेय 38
हित की रस-रूपता 50
द्विदल 58
विशुद्ध प्रेम का स्वरूप 69
प्रेम और रूप 78
हित वृन्‍दावन 82
हित-युगल 97
युगल-केलि (प्रेम-विहार) 100
श्‍याम-सुन्‍दर 13
श्रीराधा 125
राधा-चरण -प्राधान्‍य 135
सहचरी 140
श्री हित हरिवंश 153
उपासना-मार्ग
उपासना-मार्ग 162
परिचर्या 178
प्रकट-सेवा 181
भावना 186
नित्य-विहार 188
नाम 193
वाणी 199
साहित्य
सम्प्रदाय का साहित्य 207
श्रीहित हरिवंश काल 252
श्री धु्रवदास काल 308
श्री हित रूपलाल काल 369
अर्वाचीन काल 442
ब्रजभाषा-गद्य 456
संस्कृत साहित्य
संस्कृत साहित्य 468
अंतिम पृष्ठ 508

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