श्रीहित हरिवंश गोस्वामी:संप्रदाय और साहित्य -ललिताचरण गोस्वामी
साहित्य
चाचा हित वृन्दावनदास जी
राधावल्लभीय सम्प्रदाय में उत्सवों का संख्या अपेक्षाकृत कम है। यहाँ वही उत्सव ग्रहण किये गये हैं जो नित्य रास-विलास की भावना के अनुकूल पड़ते हैं। अतिवल्लभ जी ने बतलाया है की वही नैमित्तिक उत्सव सम्प्रदाय में गृहीत हैं जो नित्य सेवा के संग बन गये हैं और सूक्ष्मरूप से नित्य सेवा के संग रहते हैं, नैमित्तिक उत्सव जिते नित्य कृत्य के अंग। दशहरा, रथयात्रा, अन्नकूट आदि का राधावल्लभीय नित्य सेवा से कोई संबंध नहीं है और इन उत्सवों से संबंधित चाचा जी के पदों का औचित्य लोक संग्राहकता की दृष्टि से ही ठहरता है। चाचा जी ने सम्प्रदाय के इतिहास को भी सुव्यवस्थित करने की चेष्टा की है। ‘रसिक अनन्य परचावली’ में उन्होंने अपने काल तक के रसिक भक्तों का परिचय बड़ी खोज के साथ उपस्थित किया है। ‘श्री हरिवंश सहस्रनाम’ में हिताचार्य के जीवन से संबंधित अनेक नई घटनाओं का परिचय मिलता है। ‘श्री हितरूप चरित्र बेली’ में उन्होंने अपने गुरुदेव का जीवन वृत्त दिया है। चाचा जी विनोदी स्वभाव के महात्मा थे। उनकी रची हुई अनेक लीलाओं में हास्य विनोद का पुट मिलता है। उप-देशात्मक रचनाओं में भी वे बड़ी मीठी चुटकियां लेते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (अष्टयाम)
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