कर आत्म संयम धैर्य से अतिशुद्ध मति में लीन हो॥
सब त्याग शब्दादिक विषय, नित राग-द्वेष-विहीन हो॥51॥
एकान्तसेबी अल्प-भोजी, तन मन वचन को वश किए॥
हो ध्यान-युक्त सदैव ही, वैराग्य का आश्रय लिए॥52॥
बल अहंकार घमण्ड संग्रह क्रोध काम विमुक्त हो॥
ममता-रहित नर शान्त, ब्रह्म-विहार के उपयुक्त हो॥53॥
जो ब्रह्मभूत प्रसन्न-मन है, चाह-चिन्ता-हीन है॥
सम भाव सबमें साध, होता भक्ति में लवलीन है॥54॥
मैं कौन कैसा, भक्ति से उसको सभी यह ज्ञान हो॥
मुझमें मिले, तत्काल मेरी जब तत्त्व से पहचान हो॥55॥