अर्जुन बोले-
हे कृष्ण! क्या है ब्रह्म? क्या अध्यात्म है? क्या कर्म है?
अधिभूत कहते हैं किसे? अधिदैव का क्या मर्म है?। 1॥
इस देह में अधियज्ञ कैसे और किसको मानते?
मरते समय कैसे जितेन्द्रिय जन तुम्हें पहिचानते ?। 2॥
श्रीभगवान् बोले-
अक्षर परम वह ब्रह्म है, अध्यात्म उसका स्वभाव ही।
जो भूतभावोद्भव करे, व्यापार कर्म कहा वही॥3॥
अधिभूत नश्वर भाव है, चेतन पुरुष अधिदैव ही।
अधियज्ञ मैं सब प्राणियों के देह बीच सदैव ही॥4॥
तन त्यागता जो अन्त में मेरा मनन करता हुआ।
मुझमें असंशय नर मिले वह ध्यान यों धरता हुआ॥5॥