हरिगीता अध्याय 11:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 11 पद 1-5

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अर्जुन बोले-
उपदेश यह अति गुप्त जो तुमने कहा करके दया।
अध्यात्म विषयक ज्ञान से सब मोह मेरा मिट गया॥1॥

विस्तार से सब सुन लिया उत्पत्ति लय का तत्त्व है।
मैंने सुना सब आपका अक्षय अनन्त महत्त्व है॥2॥

हैं आप वैसे आपने जैसा कहा है हे प्रभो।
मैं चाहता हूँ देखना ऐश्वर्यमय उस रूप को॥3॥

समझें प्रभो यदि आप, मैं देख सकता हूँ सभी।
तो वह मुझे योगेश! अव्यय रूप दिखलादो अभी॥4॥

श्रीभगवान् बोले-
हे पार्थ! देखो दिव्य अनुपम विविध वर्णाकार के।
शत-शत सहस्रों रूप मेरे भिन्न भिन्न प्रकार के॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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