हरिगीता अध्याय 12:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 12 पद 1-5

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अर्जुन ने कहा-
अव्यक्त को भजते कि जो धरते तुम्हारा ध्यान हैं।
इन योगियों में योगवेत्ता कौन श्रेष्ठ महान हैं॥1॥

श्रीभगवान् ने कहा-
कहता उन्हें मैं श्रेष्ठ, मुझमें चित्त जो धरते सदा।
जो युक्त हो श्रद्धा-सहित, मेरा भजन करते सदा॥2॥

अव्यक्त, अक्षर, अनिर्देश्य, अचिन्त्य नित्य स्वरूप को।
भजते अचल, कूटस्थ, उत्तम सर्वव्यापी रूप को॥3॥

सब इन्द्रियाँ साधे सदा समबुद्धि ही धरते हुए।
पाते मुझे वे पार्थ प्राणीमात्र हित करते हुए॥4॥

अव्यक्त में आसक्त जो होता उन्हें अति क्लेश है।
पाता पुरुष यह गति, सहन करके विपत्ति विशेष है॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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