संजय ने कहा-
ऐसे कृपायुत अश्रुपूरित दुःख से दहते हुए।
कौन्तेय से इस भाँति मधुसूदन वचन कहते हुए॥1॥
श्रीभगवान् बोले-
अर्जुन! तुम्हें संकट- समय में क्यों हुआ अज्ञान है।
यह आर्य- अनुचित और नाशक स्वर्ग, सुख, सम्मान है॥2॥
अनुचित नपुंसकता तुम्हें, हे पार्थ! इसमें मत पड़ो।
यह क्षुद्र कायरता, परंतप! छोड़ कर आगे बढ़ो॥3॥
अर्जुन ने कहा-
किस भाँति मधुसूदन! समर में भीष्म द्रोणाचार्य पर।
मैं बाण अरिसूदन चलाऊँ, वे हमारे पूज्यवर॥4॥
भगवन्! महात्मा गुरुजनों का मारना न यथेष्ट है।
इससे जगत् में मांग भिक्षा पेट-पालन श्रेष्ठ है।
इन गुरुजनों को मारकर, जो अर्थलोलुप हैं बने॥
उनके रुधिर से ही सने, सुख-भोग होंगे भोगने॥5॥