हरिगीता अध्याय 2:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 2 पद 1-5

Prev.png

संजय ने कहा-
ऐसे कृपायुत अश्रुपूरित दुःख से दहते हुए।
कौन्तेय से इस भाँति मधुसूदन वचन कहते हुए॥1॥

श्रीभगवान् बोले-
अर्जुन! तुम्हें संकट- समय में क्यों हुआ अज्ञान है।
यह आर्य- अनुचित और नाशक स्वर्ग, सुख, सम्मान है॥2॥

अनुचित नपुंसकता तुम्हें, हे पार्थ! इसमें मत पड़ो।
यह क्षुद्र कायरता, परंतप! छोड़ कर आगे बढ़ो॥3॥

अर्जुन ने कहा-
किस भाँति मधुसूदन! समर में भीष्म द्रोणाचार्य पर।
मैं बाण अरिसूदन चलाऊँ, वे हमारे पूज्यवर॥4॥

भगवन्! महात्मा गुरुजनों का मारना न यथेष्ट है।
इससे जगत् में मांग भिक्षा पेट-पालन श्रेष्ठ है।
इन गुरुजनों को मारकर, जो अर्थलोलुप हैं बने॥
उनके रुधिर से ही सने, सुख-भोग होंगे भोगने॥5॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः