हरिगीता अध्याय 15:1-5

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 15 पद 1-5

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श्रीभगवान ने कहा-
है मूल ऊपर, शाख नीचे, पत्र जिनके वेद हैं॥
वे वेदवित् जो जानते अश्वत्थ-अव्यय भेद हैं॥1॥

पल्लव विषय, गुण से पली अध-ऊर्ध्व शाखा छा रहीं॥
नर-लोक में नीचे जड़ें, कर्मानुबन्धी जा रहीं॥2॥

उसका यहाँ मिलता स्वरूप, न आदि मध्याधार से॥
दृढ़मूल यह अश्वत्थ काट असंग शस्त्र-प्रहार से॥3॥

फिर वह निकालो ढूँढ़कर, पद श्रेष्ठ ठीक प्रकार से॥
कर प्राप्त जिसको फिर न लौटे, छूटकर संसार से॥
मैं शरण उसकी हूँ, पुरुष जो आदि और महान है॥
उत्पन्न जिससे सब पुरातन, यह प्रवृत्ति-विधान है॥4॥

जीता जिन्होंने संग-दोष, न मोह जिनमें मान है॥
मन में सदा जिनके जगा अध्यात्म-ज्ञान प्रधान है॥
जिनमें न कोई कामना, सुख-दुःख और न द्वन्द्व ही॥
अव्यय परमपद को सदा, ज्ञानी पुरुष पाते वही॥5॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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