हरिगीता अध्याय 15:6-10

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 15 पद 6-10

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जिसमें न सूर्य्य प्रकाश चन्द्र न आग ही का काम है॥
लौटे न जन जिसमें पहुँच मेरा वही पर धाम है॥6॥

इस लोक में मेरा सनातन अंश है यह जीव ही॥
मन के सहित छः प्रकृतिवासी खींचता इन्द्रिय वही॥7॥

जब जीव लेता देह अथवा त्यागता सम्बन्ध को॥
करता ग्रहण इनको सुमन से वायु जैसे गन्ध को॥8॥

रसना, त्वचा, दृग, कान एवं नाक, मन-आश्रय लिये॥
यह जीव सब सेवन किया करता विषय निर्मित किये॥9॥

जाते हुए तन त्याग, रहते, भोगते गुणयुक्त भी॥
जानें न इसको मूढ़ मानव, जानते ज्ञानी सभी ॥10॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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