इस लोक में क्षर और अक्षर दो पुरुष हैं सर्वदा॥
क्षर सर्व भूतों को कहा कूटस्थ है अक्षर सदा॥16॥
कहते जिसे परमात्मा उत्तम पुरुष इनसे परे॥
त्रैलोक्य में रह ईश अव्यय सर्व जग पोषण करे॥17॥
क्षर और अक्षर से परे, मैं श्रेष्ठ हूँ संसार में॥
इस हेतु पुरुषोत्तम कहाया वेद लोकाचार में॥18॥
तज मोह पुरुषोत्तम मुझे, जो पार्थ! लेता जान है॥
सब भाँति वह सर्वज्ञ हो भजता मुझे मतिमान् है॥19॥
मैंने कहा यह गुप्त से भी गुप्त ज्ञान महान् है॥
यह जानकर करता सदा जीवन सफल मतिमान् है॥20॥
पन्द्रहवाँ अध्याय समाप्त हुआ॥15॥