अविभक्त होकर प्राणियों में वह विभक्त सदैव है।
वह ज्ञेय पालक और नाशक जन्मदाता देव है॥16॥
वह ज्योतियों की ज्योति है, तम से परे है, ज्ञान है।
सब में बसा है, ज्ञेय है, वह ज्ञानगम्य महान् है॥17॥
यह क्षेत्र, ज्ञान, महान् ज्ञेय, कहा गया संक्षेप से।
हे पार्थ, इसको जान मेरा भक्त मुझमें आ बसे॥18॥
यह प्रकृति एवं पुरुष दोनों ही अनादि विचार हैं।
पैदा प्रकृति से ही समझ, गुण तीन और विकार हैं॥19॥
है कार्य एवं करण की उत्पत्ति कारण प्रकृति ही।
इस जीव को कारण कहा, सुख-दुःख भोग निमित्त्त ही॥20॥