हरिगीता अध्याय 13:11-15

श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश'

अध्याय 13 पद 11-15

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अध्यात्मज्ञान व तत्त्वज्ञान विचार, यह सब ज्ञान है।
विपरीत इनके और जो कुछ है सभी अज्ञान है॥11॥

अब वह बताता ज्ञेय जिसके ज्ञान से निस्तार है।
नहिं सत् असत्, परम ब्रह्म तो अनादि और अपार है॥12॥

सर्वत्र उसके पाणि पद, सिर नेत्र मुख सब ओर ही।
सब ओर उसके कान हैं, सर्वत्र फैला है वही॥13॥

इन्द्रिय-गुणों का भास उसमें किन्तु इन्द्रिय-हीन है।
हो अलग जग-पालक, निर्गुण होकर गुणों में लीन है॥14॥

भीतर व बाहर प्राणियों में दूर भी है पास भी
वह चर अचर अति सूक्ष्म है जाना नहीं जाता कभी॥15॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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