विषय सूची 1 श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' 2 अध्याय 13 पद 11-15 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ 4 संबंधित लेख श्रीहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' अध्याय 13 पद 11-15 अध्यात्मज्ञान व तत्त्वज्ञान विचार, यह सब ज्ञान है। विपरीत इनके और जो कुछ है सभी अज्ञान है॥11॥ अब वह बताता ज्ञेय जिसके ज्ञान से निस्तार है। नहिं सत् असत्, परम ब्रह्म तो अनादि और अपार है॥12॥ सर्वत्र उसके पाणि पद, सिर नेत्र मुख सब ओर ही। सब ओर उसके कान हैं, सर्वत्र फैला है वही॥13॥ इन्द्रिय-गुणों का भास उसमें किन्तु इन्द्रिय-हीन है। हो अलग जग-पालक, निर्गुण होकर गुणों में लीन है॥14॥ भीतर व बाहर प्राणियों में दूर भी है पास भी वह चर अचर अति सूक्ष्म है जाना नहीं जाता कभी॥15॥ टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख देखें • वार्ता • बदलेंहरिगीता -दीनानाथ भार्गव 'दिनेश' पहला अध्याय (1) · द्वितीय अध्याय (2) · तृतीय अध्याय (3) · चतुर्थ अध्याय (4) · पंचम अध्याय (5) · षष्टम अध्याय (6) · सातवाँ अध्याय (7) · आठवाँ अध्याय (8) · नौवाँ अध्याय (9) · दसवाँ अध्याय (10) · ग्यारहवाँ अध्याय (11) · बारहवाँ अध्याय (12) · तेरहवाँ अध्याय (13) · चौदहवाँ अध्याय (14) · पंद्रहवाँ अध्याय (15) · सोलहवाँ अध्याय (16) · सत्रहवाँ अध्याय (17) · अठारहवाँ अध्याय (18) वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ ऋ ॠ ऑ श्र अः