सुजान-रसखान पृ. 63

सुजान-रसखान

नेत्रोपालंभ

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कवित्त

छूट्यौ गृह काज लोक लाज मन मोहिनी को,
भूल्‍यौ मन मोहन को मुरली बजाइबौ।
देखो रसखान दिन द्वै में बात फैलि जै है,
सजनी कहाँ लौं चंद हाथन दुराइबौ।
कालि ही कालिंदी कूल चितयौ अचानक ही,
दोउन की दोऊ ओर मुरि मुसकाइबौ।
दोऊ परै पैंया दोऊ लेत हैं बलैया, इन्‍हें
भूल गई गैया उन्‍हें गागर उठाइबौ।।141।।

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