सुजान-रसखान पृ. 6

सुजान-रसखान

कृष्‍ण का अलौकिकत्‍व

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कवित्त

संभु धरै ध्‍यान जाको जपत जहान सब,
तातें न महान और दूसर अवरेख्‍यौ मैं।
कहै दसखान वही बालक सरूप धरै,
जाको कछु रूप रंग अद्भुत अवलेख्‍यौ मैं।
कहा कहूँ आली कछु कहती बनै न दसा,
नंद जी के अंगना में कौतुक एक देख्‍यौ मैं।
जगत को ठाटी महापुरुष विराटी जो,
निरंजन निराटी ताहि माटी खात देख्‍यौ मैं।।14।।

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