सवैया
लाय समाधि रहे ब्रह्मादिक योगी भये पर अंत न पावैं।
साँझ ते भोरहिं भोर ते साँझति सेस सदा नित नाम जपावैं।
ढूँढ़ फिरै तिरलोक में साख सुनारद लै कर बीन बजावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं।।10।।
गुंज गरें सिर मोरपखा अरु चाल गयंद की मो मन भावै।
साँवरो नंदकुमार सबै ब्रजमंडली में ब्रजराज कहावै।
साज समाज सबै सिरताज औ लाज की बात नहीं कहि आवै।
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पै नाच नचावै।।11।।