सुजान-रसखान पृ. 35

सुजान-रसखान

मुस्‍कान माधुरी

Prev.png

सवैया

आजु सखी नंद-नंदन की तकि ठाढ़ौ हों कुंजन की परछाहीं।
नैन बिसाल की जोहन को सब भेदि गयौ हियरा जिन माहीं।
घाइल धूमि सुमार गिरी रसखानि सम्‍हारति अँगनि जाहीं।
एते पै वा मुसकानि की डौंड़ी बजी ब्रज मैं अबला कित जाहीं।।81।।

दोहा
ए सजनी लोनो लला, लखौ नंद के देह।
चितयौ मृदु मुस्‍काइ कै, हरी सबै सुधि देह।।82।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः