सवैया
मोहन के मन की सब जानति जोहन के मोहि मग लियौ मन।
मोहन सुंदर आनन चंद तें कुंजनि देख्यौ में स्याम सिरोमन।
ता दिन तें मेरे नैननि लाज तजी कुलकानि की डोलत हौं बन।
कैसी करौं रसखानि लगी जक री पकरी पिय के हित को पन।।72।।
लोक की लाज तज्यौ तबहिं जब देख्यो सखी ब्रजचंद सलौनो।
खंजन मीन सरोजन की छबि गंजन नैन लला दिन होनो।
हेर सम्हारि सकै रसखानि सो कौन तिया वह रूप सुठोनो।
भौंह कमान सौं जोहन को सर बेधत प्राननि नंद को छोनो।।73।।