दोहा
मन लीनो प्यारे चितै, पै छटाँक नहिं देत।
यहै कहा पाटी पढ़ी, दल को पीछो लेत।।62।।
मो मन मानिक ले गयौ, चिते चोर नंदनंद।
अब बेमन मैं क्या करूँ, परी फेर के फंद।।63।।
नैन दलालनि चौहटें, मन मानिक पिय हाथ।
रसखाँ ढोल बजाइके, बेच्यौ हिय जिय साथ।।64।।
सोरठा
प्रीतम नंदकिशोर, जा दिन तें नेननि लग्यौ।
मन पावन चित्त चोर, पलक ओट नहिं सहि सकौं।।65।।