सुजान-रसखान पृ. 18

सुजान-रसखान

रूप-माधुरी

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सवैया

अति सुंदर री ब्रजराजकुमार महा मृदु बोलनि बोलत है।
लखि नैन की कोर कटाक्ष चलाइ कै लाज की गाँठन खोलत हैं।
सुनि री सजनी अलबेलो लला वह कुंजनि कुंजनि डोलत है।
रसखानि लखें मन बूड़ि गयौ मधि रूप के सिंधु कलोकत है।।36।।

तैं न लख्‍यौ जब कुंजनि तें बनिकै निकस्‍यौ भटक्‍यौ मटक्‍यौ री।
सोहत कैसो हरा टटक्‍यौ अठ कैसो किरीट लसै लटक्‍यौ री।
को रसखानि फिरै भटक्‍यौ हटक्‍यौ ब्रज लोग फिरै भटक्‍यौ री।
रूप सबै हरि वा नट को हियरे अटक्‍यौ अटक्‍यौ अटक्‍यो री।।37।।

नैननि बंक बिसाल के बाननि झेलि सकै अस कौन नवेली।
बेचत है हिय तीछन कोर सुमार गिरी तिय कोटिक हेली।
छौड़ै नही छिनहूँ रसखानि सु लागी फिरै द्रुम सों जनु बेली।
रौरि परी छबि की ब्रजमंडल कुंडल गंडनि कुंतल केली।।38।।

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