सवैया
लाज के लेप चढ़ाइ कै अंग पची सब सीख को मंत्र सुनाइ कै।
गारुड़ ह्वै ब्रज लोग भक्यौ करि औषद बेसक सौहैं दिखाइ कै।।
ऊधौ सौं रसखानि कहै लिन चित्त धरौ तुम एते उधाइ कै।
कारे बिसारे को चाहैं उतर्यौ अरे बिख बाबरे राख लगाइ कैं।।250।।
सार की सारी सो पारीं लगै धरिबे कहै सीस बघंबर पैया।
हाँसी सो दासी सिखाई लई है बेई जु बेई रसखानि कन्हैया।
जोग गयौ कुबजा की कलानि मैं री कब ऐहै जसोमति मैया।
हाहा न ऊधौ कुढ़ाऔ हमें अब हीं कहि दै ब्रज बाजे बधैया।।251।।