सुजान-रसखान पृ. 108

सुजान-रसखान

सपत्नी-भाव

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सवैया

काइ सौं माई वह करियै सहियै सोई जो रसखान सहावैं।
नेय कहा जब और कियौं तब नाचियै सोई जौ नचावैं।
चाहत है हम और कहा सखि क्‍यों हू कहू पिय देखन पावैं।
चरियै सौं जगुपाल रच्‍यौ तौं भली ही सबै मिलि चेरी कहावें।।245।।

भेती जू पें कुबरी ह्याँ सखी भरी लातन मूका बकोटती लेती।
लेती निकारि हिये की सबै नक छेदि कौड़ी पिराइ कै देती।।
देती नचाइ कै नाच वा राँड कौं लाल रिझावन को फल सेती।
सेती सदाँ रसखानि लियें कुबरी के करेजनि सूलसी भेती।।246।।

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