सवैया
अँखियाँ अँखियाँ सों सकाइ मिलाइ हिलाइ रिझाइ हियो हरिबो।
बतिया चित चोरन चेटक सी रस चारु चरित्रन ऊचिरबो।।
रसखानि के प्रान सुधा भरिबो अधरान पै त्यौं अधरा धरिबो।
इतने सब मैन के मोहिनी जंत्र पै मंत्र वसीकर सो करिबौ।।230।।
बागन का को जाओ पिया, बैठी ही बाग लगाभ दिखाऊँ।
एड़ी अनाकर सी मौरि रही, बरियाँ दोउ चंपे की डार नवाऊँ।।
छातनि मैं रस के निबुआ अरु घूँघट खोलि कै दाख चखाऊँ।
टाँगन के रस चसके रति फूलनि की रसखानि लूटाऊँ।।231।।