बावरी गोपी -प्रेम भिखारी पृ. 82

बावरी गोपी -प्रेम भिखारी

13. मैं भली कि मछली

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वियोग होते ही प्राण-त्याग,
पूर्ण प्रेम का परिचायक है।
तो हमारे प्रेम में अवश्य ही कुछ कमी प्रतीत होती है,
तभी तो प्राण नहीं निकलते।
तब तो हमसे मछलियाँ भी भली हैं।
किंतु हमारे प्राण, शरीर तथा श्रृंगार आदि
सब कन्हैया के लिये ही हैं,
हम प्राण त्याग दें
और उन्हें दुःख हो तब?
जब प्राण मेरे नहीं
तो उसे त्यागने का मुझे क्या अधिकार है?
मछली से मैं ही अच्छी हूँ।
किंतु....................
हाय राम, फिर वही किंतु।
किससे पूछूँ!
कौन बताये,
मैं भली या मछली?
(नेत्र बंद हो जाते हैं)

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बावरी गोपी -प्रेम भिखारी
क्रम संख्या पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
1. कल की बात 1
2. क्या मैं बावरी हूँ? 6
3. मेरी ही भूल थी 11
4. और कूक 18
5. कैसे थे वे दिन? 23
6. कल आयेंगे 29
7. रे भौंरे, मत गूँज 37
8. इस मक्खन का क्या करूँ? 44
9. हाय, यह तो स्वप्न था 52
10. कूबरी, तुझे धिक्कार है 58
11. कूबरी! तू धन्य है 64
12. कुछ न कहना 69
13. मैं भली कि मछली 75
14. कोई तो बताये 83
15. सुनाऊँ किसको मनकी बात 90
16. यह है प्रेम-परिणाम 98
17. यही आशा तो बैरिन हो गयी 105
18. बस, एक झलक 112
19. मैं तो चली पिया की डागरिया 119

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