व्यर्थ पड़े रहने से क्या लाभ?
चलूँ, बाहर निकलूँ;
सम्भव है, कुछ शान्ति मिले।
किंतु अभी तो रात बहुत शेष है;
रहे न,
अपने लिये दिन कब होता है?
जब सदा रात ही है तो उससे डरना क्या?
दिन तो तभी होगा,
जब प्यारे नटवर सामने खड़े होकर मुस्करायेंगे।
सास जान ले तब?
उसकी कोई चिन्ता नहीं।
सास का बिना जताये चुपके से चली जाना
हम लोगों का पूरा अभ्यास है।
सबेरे आकर कह दूँगी कि अभी तो गयी थी।
तो धीरे से उठकर चल देना चाहिये।
नींद-वींद नहीं आयेंगी।