गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती पृ. 319

गीता रस रत्नाकर -स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती महाराज

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षष्ठम अध्याय

अब भगवान् बताते हैं कि योग में बाधक क्या है और योग में साधक क्या है?

नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नत: ।
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ॥[1]

‘नात्यश्नस्तु योगोस्ति’- ज्यादा भोजन करने से योगाभ्यास नहीं होगा। अन्न में नशा होता है। जौ में नशा होता है, गेहूँ में भी नशा होता है और चने में भी नशा होता है। इनको सड़ाकर देखो तब मालूम पड़ जायेगा। इसलिए मात्रा से अधिक भोजन करने पर उसका जो परिपाक होता है, उसमें मद की, नशे की उत्पत्ति होजाती है। यदि कहो कि अच्छा, हम खाना ही छोड़ दें तो? नहीं, यदि खाना छोड़ दोगे तो शरीर को जो शक्ति चाहिए, वह नहीं मिलेगी। इसलिए शरीर को शक्ति मिले, लेकिन नशा न हो, इस हिसाब से खाना चाहिए। ‘न शं यया सा नशा’- नशा में शान्ति नहीं है। कबीरदास कहते हैं कि-

नसा पीकर धरे ध्यान। गिरही होकर कथे ग्यान।।
यति होकर कूटे भग। कहे कबीर ये तीनों ठग।।

तो भाई, नशा नहीं होना चाहिए, किन्तु शरीर में शक्ति बनी रहनी चाहिए। ज्यादा सोना नहीं चाहिए, नहीं तो आलस्य, निद्रा और प्रमाद बढ़ जायेगा। ज्याद सोने वाले का पेट बढ़ जाता है। जो खा-पीकर सो जाते हैं, उनका पेट बढ़ जाता है। भोजन करके ज्यादा बैठने से भी पेट बढ़ता है। पर यदि कहो कि हम सोयेंगे ही नहीं तो जब ध्यान करने बैठोगे तब नींद चढ़ बैठेगी, मन एकाग्र नहीं होगा, निद्रा आलस्य प्रमाद आ जायेगा। इसलिए ज्यादा खाना, बिलकुल न खाना ज्यादा सोना और बिलकुल न सोना- ये योग के बाधक हैं।

अब योग के साधक क्या हैं, यह देखो-

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दु:खहा ॥[2]

युक्ताहारविहारस्य’- योगी का आहार-विहार युक्त होना चाहिए। युक्त का अर्थ परिमित है। श्रीमद्भागवत में आया है कि ‘पथ्यं हितं मितम्’ भोजन शरीर के लिए पथ्य हो, हितकारी हो और मित हो। मित माने कम नहीं, ज्यादा नहीं, भोजन की मात्रा बराबर हो। यह नहीं कि कभी ज्यादा तो कभी कम और कभी इतना और कभी उतना। एक बात और है। यदि आप अपने हाथ से पकाते हो तो पकाने में आसान होना चाहिए। यह नहीं, कि पकाने में घंटों लगें। पंजाबी लोग सरसों का साग बनाते हैं तो छह-सात घंटे लगाते हैं। दक्षिणी लोग इडली दोसा बनाते हैं तो पहले दिन से ही उसकी सफाई और पिसाई करने लगते हैं। कश्मीर में जो रोटी बनाते हैं, उसके लिए खमीर उठाने में घंटों लगते हैं। ऐसा समय-साध्य भोजन नहीं बनाना चाहिए। दलिया, खिचड़ी जैसी कोई चीज चढ़ा दी। वह पक रही है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 16॥
  2. 17

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गीता रस रत्नाकर -अखण्डानन्द सरस्वती
क्रम संख्या अध्याय पृष्ठ संख्या
1. पहला अध्याय 1
2. दूसरा अध्याय 26
3. तीसरा अध्याय 149
4. चौथा अध्याय 204
5. पाँचवाँ अध्याय 256
6. छठवाँ अध्याय 299
7. सातवाँ अध्याय 350
8. आठवाँ अध्याय 384
9. नववाँ अध्याय 415
10. दसवाँ अध्याय 465
11. ग्यारहवाँ अध्याय 487
12. बारहवाँ अध्याय 505
13. तेरहवाँ अध्याय 531
14. चौदहवाँ अध्याय 563
15. पंद्रहवाँ अध्याय 587
16. सोलहवाँ अध्याय 606
17. सत्रहवाँ अध्याय 628
18. अठारहवाँ अध्याय 651
अंतिम पृष्ठ 723

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